जलवायु परिवर्तन: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री बोले- विकासशील राष्ट्रों को वित्त और तकनीकी मदद मुहैया कराए अमीर देश

नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शुक्रवार को कहा कि ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार विकसित देशों को आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि विकसित देशों को जलवायु संकट से निपटने के लिए विकासशील देशों को वित्त और तकनीकी मदद मुहैया करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इस साल नवंबर में अजरबैजान के बाकू में जलवायु सम्मेलन होना है। जहां नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) पर दुनिया के देशों के बीच सहमति बन सकती है। एनसीक्यूजी के तहत विकसित राष्ट्रों को एक तय राशि साल 2025 से विकासशील देशों को देनी होगी, ताकि वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई का समर्थन कर सकें।

‘कार्बन उत्सर्जन से बढ़ रहा वैश्विक तापमान’
टाइम्स नेटवर्क की ओर से आयोजित ‘भारत जलवायु शिखर सम्मेलन’ में यादव ने कहा, तापमान में वृद्धि एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) की रिपोर्ट साफतौर पर कहती है कि कार्बन उत्सर्जन बढ़ने से औसत वैश्विक तापमान बढ़ रहा है। इसके लिए देश राष्ट्रीय स्तर पर योगदान देने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चाहे वह नवीकरणीय उर्जा क्षेत्र हो या कार्बन उत्सर्जन को कम करना हो, भारत ने अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।

‘विकासशील देशों की मदद करें विकसित राष्ट्र’
यादव ने कहा कि अगर हमें दुनिया में समान विकास चाहिए तो विकसित देशों को विकासशील देशों को वित्त और तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है। यह बाकू में आयोजित होने वाले COP29 में मुख्य बिंदु होगा। ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार देशों को आगे आना चाहिए।

कम करना होगा धरती का तापमान
2015 के पेरिस समझौते में तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय जलवायु योजनाए हैं। इन लक्ष्यों में साल 1850 से 1900 के औसत की तुलना में वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक कम करना भी शामिल है। धरती की सतह का वैश्विक तापमान अभी 1850-1900 के तापमान से 1.15 डिग्री अधिक है। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि देशों को तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक कम से कम 43 फीसदी तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा।

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