Death Anniversary:इनके विकासवाद के सिद्धांत ने पूरे विज्ञान जगत में मचा दी हलचल, चार्ल्स डार्विन के बिना अधूरा है जीव विज्ञान  

थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन’ में है कैसे बंदर से हम बने इंसान का वर्णन

नई दिल्ली। चार्ल्स डार्विन वह वैज्ञानिक थे जिनके विकासवाद के सिद्धांत ने जीवविज्ञान और उससे संबंधित विषयों में क्रांतिकारी बदलाव लाकर पूरे विज्ञान जगत में हलचल मचा दी थी। उनकी 25 सालों की मेहनत ने वैज्ञानिकों की सोच को बदल दिया था और जीवविज्ञानयों को एक दिशा प्रदान की थी।

जीवन परिचय
चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के श्रोपशायर के श्रुएसबरी के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। डार्विन अपने माता-पिता की पांचवी संतान थे। उनके पिता राबर्ट डार्विन एक जाने माने डॉक्टर थे। डार्विन जब महज 8 साल के थे तो उनकी माता की मृत्यु हो गई थी।

शिक्षा
डार्विन 1817 में जब 8 साल के थे तो उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के लिए एक इसाई मिशनरी स्कूल में दाखिल करवाया गया था। डार्विन के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे इसलिए वो डार्विन को अपने साथ रखने लगे और डॉक्टर बनने की ट्रेनिंग देने लगे। लेकिन चार्ल्स डार्विन को मेडिकल में कोई ज्यादा रूचि नहीं थी और वे विविध पौधों के नाम जानने की कोशिश करते रहते और पौधों के टुकडो को भी जमा करते।

व्यक्तिगत जीवन
चार्ल्स डार्विन ने एम्मवेज़ावूद नाम की महिला से शादी की थी। इनके 19 बच्चे हुए जिनमें से केवल 7 जिंदा रहे। जिनमे 4 बेटे उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक हुए।

पांच साल की वह यात्रा
22 साल की उम्र में 1831 को उन्हें बीगल नाम के जहाज से दुनिया घूमने का मौका मिला। शुरू में उन्हें जहाज पर रहने में परेशानी का अनुभव हुआ। पांच साल की इस यात्रा में डार्विन ने चार महाद्वीपों की यात्रा की और पक्षियों और पौधों के बहुत से जीवाश्म जमाकर उनका अध्ययन किया।

द ओरिजन ऑफ स्पीसीज
लेकिन इस यात्रा के बाद डार्विन ने पहले अपनी नोटबुक से काम चलाया फिर अपने अध्ययन का नोटबुक व्यवस्थित किया और शोधपत्र प्रकाशित करना शुरू कर दिए। डार्विन का शोधकार्य और उनकी पड़तालों और अध्ययन को व्यवस्थित करने काम सालों तक चलता रहा उन्होंने अपने विचार और पड़ताल के नतीजे द ओरिजन ऑफ स्पीसीज में प्रकाशित किए।

क्रमविकास का सिद्धांत :
विशेष प्रकार की कई प्रजातियों के पौधे पहले एक ही जैसे होते थे, पर संसार में अलग अलग जगह की भुगौलिक प्रस्थितियों के कारण उनकी रचना में परिवर्तन होता गया जिससे उस एक जाति की कई प्रजातियां बन गई।
पौधों की तरह जीवों का भी यही हाल है, मनुष्य के पूर्वज किसी समय बंदर हुआ करते थे पर कुछ बंदर अलग से विशेष तरह से रहने लगे और धीरे धीरे जरूरतों के कारण उनका विकास होता गया और वो मनुष्य बन गए।

निधन
19 अप्रैल 1882 को इस महान वैज्ञानिक की 74 साल की उम्र में मृत्यु हो गई।

 

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.