Death Anniversary:भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानायक थे तात्या टोपे, जानें क्यों मिली उन्हें यह उपाधि
7 अप्रैल 1859 को तात्या शिवपुरी-गुना के जंगलों में सोते हुए धोखे से किया था गिरफ्तार
नई दिल्ली। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणीय वीरों में उच्च स्थान प्राप्त तात्या टोपे का जन्म आज के ही दिन हुआ था। अद्वितीय शौर्य गाथा से भरा हुआ उनका जीवन आज के युवाओं के लिए बेहद प्रेरणादायक है। 1857 की क्रांति में तात्या टोपे ने न सिर्फ अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था बल्कि अपनी चतुर और कुशल रणनीतियों से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। उस समय आजादी के लिए फांसी में चढ़ जाना आम बात थी लेकिन कुछ ऐसे लोग हुए जिनके मरने के बाद क्रांति और ज्यादा भड़क गई और उन्ही में से एक थे तात्या टोपे।
जीवन परिचय
तात्या टोपे का जन्म 1814 में येवला में हुआ। उनके पिता का नाम पांडुरंग त्र्यंबक भट था तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे।
क्यों मिली टोपे उपनाम की उपाधि
बाजीराव पेशवा उनकी प्रतिभा और कर्तव्य पराणता से प्रभावित होकर उन्हें राज्यसभा में कीमती नवरत्नों से जड़ी टोपी पहनाकर उनका सम्मान भी किया था। तभी से उनका उपनाम ‘टोपे’ पड़ गया था।
1857 का विद्रोह
1857 में नाना साहेब पेशवा, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, अवध के नवाब और मुगल शासकों ने बुंदेलखंड में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। कुछ भारतीय इतिहासकारों के मुताबिक ग्वालियर के शासक भी इस विद्रोह में शामिल हुए थे। कहा जाता था कि बायजाबाई शिंदे ने विद्रोह की तैयारी की थी। कई शासक युद्ध में एक दूसरे की मदद कर रहे थे। तात्या टोपे पेशवा की सेवा में थे। उन्हें सैन्य नेतृत्व का कोई अनुभव नहीं था लेकिन अपनी कोशिशों के चलते उन्होंने यह भी हासिल कर लिया था। 1857 के बाद वे अपने आखिरी पल तक लगातार युद्ध में ही रहे या फिर यात्रा करते रहे।
रानी लक्ष्मीबाई के साथ संभाला था मोर्चा
कानपुर में अंग्रेजों को पराजित करने के बाद तात्या ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर मध्य भारत का मोर्चा संभाला था। क्रांति के दिनों में उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और नाना साहब का पूरा साथ दिया था। हालांकि उन्हें कई बार हार का भी सामना भी करना पड़ा था। वे अपने गुरिल्ला तरीके से आक्रमण करने के लिए जाने जाते थे।
अंग्रेजों की नाक में कर दिया था दम
भारत के कई हिस्सों में उन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया और खास बात ये थी कि अंग्रेजी सेना उन्हें पकड़ने में नाकाम रही थी। तात्या ने तकरीबन एक साल तक अंग्रेजों के साथ लंबी लड़ाई लड़ी।
निधन
18 अप्रैल 1859 को राष्ट्रद्रोह के आरोप में अंग्रेंजो ने तात्या को फांसी की सजा दे दी थी।