बेंगलुरु: कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से लगभग 60 किलोमीटर दूर नंदी पहाड़ियों की तलहटी में स्थित भगवान शिव का भोगानंदीश्वर मंदिर, 9वीं सदी में निर्मित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 1000 साल पहले हुआ था और यह भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। हालांकि, मंदिर का परिसर आज जर्जर स्थिति में है, जो अपने अतीत की समृद्धता और महानता की गवाही देता है।
सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक
यह मंदिर केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास का भी अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। नंदी हिल्स के नंदी गांव में स्थित यह मंदिर स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। यहां भगवान शिव के भोगानंदीश्वर मंदिर के अलावा दो अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं: अरुणाचलेश्वर मंदिर और एक अन्य छोटा सा मंदिर जो ‘उमा-महेश्वर’ के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर द्रविड़ियन शैली की वास्तुकला देखी जा सकती है, जो इस मंदिर के प्राचीन और सांस्कृतिक महत्व को और बढ़ाती है।
जर्जर हो चुकी भव्य इमारत
मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही आपको पुराने रथ, खंभों पर उकेरी गई मूर्तियां और नक्काशी के अद्भुत दृश्य दिखाई देते हैं। इन खंभों पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं, जिनमें शिव, पार्वती, ब्रह्मा, विष्णु, लक्ष्मी, सरस्वती और अन्य देवताओं के चित्र शामिल हैं। मंदिर के आंतरिक भाग में शिवलिंग और नंदी की मूर्तियां स्थित हैं, जिनकी उम्र का अनुमान लगाना थोड़ा कठिन है। हालांकि, मंदिर का बाहरी क्षेत्र और दीवारें इसके समृद्ध इतिहास की गवाही देती हैं।
ऐतिहासिक संरक्षण और साम्राज्य
9वीं सदी में निर्मित इस मंदिर का उल्लेख भारतीय पुरातत्व विभाग के शिलालेखों में भी मिलता है, जिसमें नोलंब वंश के शासक नोलांबदीराजा और सम्राट गोविंदा 3 का नाम लिया गया है। मंदिर का निर्माण राजा बाना-विद्याधारा की पत्नी रत्नावली द्वारा 800 सीई में कराया गया था। इसके बाद, इस मंदिर को बानास साम्राज्य, चोला साम्राज्य, होयसला साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य के संरक्षण में रखा गया। बाद में, यह मंदिर मैसूर साम्राज्य के तहत आया और हैदर अली तथा टीपू सुल्तान के शासन में इसका संरक्षण हुआ। 1799 में टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद यह ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया था।
निष्कर्ष
भोगानंदीश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति की अमूल्य धरोहर भी है। इसका जर्जर होता हुआ परिसर हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है और हमें इसे संरक्षित रखने की आवश्यकता को महसूस कराता है।